कहते हैं जीवन की परीक्षाओं से लड़ने के लिए कड़ी मेहनत और एक मज़बूत दृढ़ संकल्प आत्मविश्वास की ज़रूरत है. इसी कथन को सच कर दिखाया है कोटा की प्रेरणा ने, जिनका हौसला उनके सामने एक के बाद एक आई विपरीत परिस्थितियां भी नहीं तोड़ पाईं. लगातार प्रयास के बाद उन्होंने नीट जैसी कठिन परीक्षा क्रैक कर डाली.
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प्रेरणा के NEET UG में 686 नंबर आए हैं, जिसके चलते उनकी 1033वीं रैंक आई है. आइए आपको उनकी मोटिवेशनल सक्सेस स्टोरी के बारे में आपको बताते हैं.
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दसवीं कक्षा में पिता की हो गई थी मौत
प्रेरणा की ख़ुशी उस संघर्ष के बाद नाकाफ़ी है, जो उन्होंने झेला है. प्रेरणा सिंह के पिता बृजराज सिंह ऑटो चालक थे. पूरे परिवार की आर्थिक ज़िम्मेदारी उन्हीं के सिर पर थी. लेकिन साल 2018 में उनके परिवार पर दुःखों का पहाड़ टूट पड़ा. प्रेरणा उस दौरान 10वीं क्लास में पढ़ रही थीं, उसी साल उनके पिता का कैंसर के चलते निधन हो गया. उन्होंने एक नामी अखबार को दिए इंटरव्यू में बताया कि उन्होंने अपने पिता का जगह-जगह इलाज़ करवाया था. इसमें उनके परिवार के क़रीब तीन लाख़ रुपए भी ख़र्च हुए, पर कोई फ़ायदा नहीं हुआ. पिता के जाने के बाद उनके परिवार की आर्थिक स्थिति बिगड़ने लगी.
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मां ने अपने कंधों पर ली ज़िम्मेदारी
पिता के गुज़रने के बाद प्रेरणा बुरी तरह टूट गई थीं. इस बुरे समय में उनकी मां ने अपने कन्धों पर परिवार की ज़िम्मेदारी ले ली. हालांकि, उनके परिवार पर संघर्ष के बादल अभी थमे नहीं थे. उनके पिता की मौत के बाद कोरोना का कहर देश पर टूटा, जिसके बाद उनकी आर्थिक स्थिति और ख़राब हो गई. एक समय तो रिश्तेदारों की मदद और उनके मां की प्रति माह आने वाली 500 रुपए की पेंशन से ही घर चलने लगा. इसी से उनकी और उनके बाकी भाई-बहन की पढ़ाई होती थी. इस दौरान भी प्रेरणा ने पढ़ाई नहीं छोड़ी. वो दस से 12 घंटे तक पढ़ाई करती थीं और कोचिंग के बाद रिविज़न करती थीं. इस दौरान टीचर्स ने भी उनका पूरा मनोबल बढ़ाया.
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पिता को था पूरा भरोसा
प्रेरणा का कहना है कि उनके पिता हमेशा से ही उन पर भरोसा करते थे. वे कहते थे कि उनकी बेटी उनका नाम रोशन करेगी. हालांकि, उस दौरान प्रेरणा पढ़ाई में एवरेज ही थीं, लेकिन फिर भी उनके पिता ने कभी उनकी पढ़ाई में कोई दिक्कत नहीं आने दी. उनके निधन के बाद प्रेरणा ने ठान लिया कि वो अपने पापा का सपना पूरा करके ही रहेंगी. वो ख़ुद भी डॉक्टर बनना चाहती थीं और पिता के जाने के बाद उन्होंने इसे ही अपना लक्ष्य बना लिया.
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ज़िम्मेदारियों ने बेहद कम उम्र में बनाया परिपक्व
प्रेरणा की मां माया कंवर ने परिवार की रोज़ी-रोटी चलाने की ज़िम्मेदारी अपने सिर ले ली. इन सब हालातों को देखते हुए उनके बच्चे भी समय से पहले ही बड़े हो गए. कभी-कभी जब घर में सब्जी नहीं होती थी, तो वो रोटी के साथ प्याज़ या लहसुन की चटनी खाकर ही गुज़ारा कर लिया करते थे. अगर उनकी मां उन्हें दिन के दस रुपए भी देती थी तो भी वो कई दिनों तक इसे संभाल कर रखते थे और पढ़ाई करते रहते थे.
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कर्ज़े की मार भी झेली
इन सबके बीच प्रेरणा के परिवार को कर्ज़े की भी मार झेलनी पड़ी. उनके पिता ने परिवार और मकान के लिए लोन लिया था. उनके निधन के बाद पता चला कि उनके परिवार को 27 लाख रुपए चुकाने हैं. दरअसल बृजराज सिंह की मौत के बाद मकान की क़िस्त नहीं जा सकी, जिसके चलते बैंक वालों ने उन्हें नोटिस भेज दिया. बाद में उन्होंने इधर-उधर से कुछ किस्तें जमा कीं. उनके पिता के इंश्योरेंस का भी मामला चल रहा है. लेकिन अब बेटी के घर का नाम रोशन करने के बाद उनकी मां को ये सभी परेशानियां छोटी लगने लगी हैं.
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प्रेरणा अपने MBBS की पढ़ाई पूरी करने के बाद पीजी करना चाहती हैं. उसके बाद वो मेडिकल फ़ील्ड में रिसर्च करना चाहती हैं. वो चाहती हैं कि कैंसर जैसी बीमारियों की और गहराइयों से ख़ोज हो और मरीज़ों को बचाया जा सके.