19वीं सदी के आरंभ तक ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ ने अधिकतर भारतीय शासकों के साथ ‘सहायक संधि’ कर ली थी. इस संधि के बाद भारतीय राजाओं के पास कुछ ही अधिकार रह गए थे. यहां तक कि उनके पास ख़ुद की सेना भी नहीं रही. ऐसे में वो पूरी तरह से अंग्रेज़ों पर आश्रित हो गए थे. इसके बाद 1857 के संग्राम में भारतीय क्रांतिकारियों, राजाओं और नवाबों ने अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ आज़ादी का बिगुल ज़रूर बजाया था, लेकिन इस दौरान अधिकतर भारतीय राजा अंग्रेज़ों के साथ थे. इनमें राजपुताना, सिंधिया, सिख, गोरखा सभी मज़बूरी में अंग्रेज़ों के साथ हो लिए थे. अंग्रेज़ों ने इन्हीं राजाओं की मदद से भारत की आम जनता और किसानों पर अनगिनत जुल्म किये.

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इतिहासकार तो ये भी मानते हैं कि 19वीं सदी से ही भारत के अधिकतर राजे-रजवाड़े अपने विदेशी आकाओं को ख़ुश रखने में इस कदर मशगूल थे कि वो देश की आज़ादी के ख़िलाफ़ तक हो लिए थे. आलम ये था कि भारत के लोग ब्रिटिश शासित क्षेत्रों में तो फिर भी अपने अधिकारों की बात कर सकते थे, लेकिन देशी राजाओं द्वारा शासित क्षेत्र में ये मुमकिन नहीं था. इन्हीं राजाओं ने अंग्रेज़ी हुकूमत को मजबूत करने के लिए ‘भारतीय स्वाधीनता आंदोलन’ को कुचलने में उनकी मदद भी की थी. क्रांतिकारियों की क़ुर्बानी के बाद जब अंग्रेज़ भारत से चले गये तो इन राजे-रजवाड़ों के आज़ाद रहने के मंसूबों पर पंडित नेहरू और सरदार पटेल ने पानी फेर दिया था. 

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ब्रिटिशकाल में भारतीय राजाओं के शासन को इस तरह से भी समझा जा सकता है-

दरअसल, अंग्रेज़ों ने 200 सालों तक भारत पर दो तरह से राज किया था. पहला था ‘ब्रिटिश भारत’ और दूसरा ‘देशी रियासतें’. अंग्रेज़ों की इसी चाल को न तो भारतीय हुक्मरान, न हीं भारतीय राजा समझ सके और देश अंग्रेज़ों का गुलाम होते चला गया.

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1- ब्रिटिश भारत   

ये भारत का वो हिस्सा था, जिस पर अंग्रेज़ सीधे तौर पर राज करते थे. सन 1757 में अंग्रेज़ों ने ‘प्लासी का युद्ध’ जीतने के बाद बंगाल पर सीधे तौर पर शासन न करने के बजाय मीर जाफ़र को बंगाल का नवाब बनाया. इस दौरान मीर जाफ़र अंग्रेज़ों की कठपुतली की तरह कार्य करता था. इसके बाद अंग्रेज़ों ने मीर जाफ़र को गद्दी से हटाकर ख़ुद शासन करना शुरू कर दिया. अंग्रेज़ों ने इसी तरह का खेल भारतीय राजाओं के साथ भी खेला. ब्रिटिश हुक्मरानों ने पहले राजाओं के साथ अपने मन मुताबिक़ संधि की इसके बाद उन्हें गद्दी से हटाकर उनके राज्य पर कब्ज़ा करके वहां सीधे शासन करना शुरू कर दिया. इस दौरान भारत के जिन-जिन हिस्सों में अंग्रेज़ सीधे तौर पर शासन करते थे वो ‘ब्रिटिश भारत’ कहलाता था.

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2- देशी रियासतें

ये वो भारतीय राज्य थे जहां अंग्रेज़ सीधे तौर पर राज नहीं करते थे, बल्कि यहां राज्य राजा चलाते थे. इन सभी राजाओं को अंग्रेज़ नियंत्रित करते थे. इस दौरान हर रियासत में एक अंग्रेज़ पदाधिकारी ‘राजदूत’ के रूप में होता था, जो भारत के वाइसराय द्वारा ब्रिटिश सरकार के प्रतिनिधि के रूप में भेजा जाता था. ये रियासत के सारे कामों पर नज़र रखता था और प्रजा से मिलने वाले कर (टैक्स) का हिसाब-किताब भी रखता था. अंग्रेज़ों ने इस परंपरा की शुरुआत 1757 में शुरू की थी, लेकिन बाद में उन्होंने सभी राजाओं के राज्य को ‘ब्रिटिश भारत’ में मिलाना शुरू कर दिया था.

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सन 1757 में अंग्रेज़ों ने जिन राजाओं के उत्तराधिकारी नहीं होते थे उनके लिए दत्तक पुत्रों की मान्यता को ख़त्म कर दिया था. ऐसे में अंग्रेज़ सीधे तौर पर उनके पूरे राज्य को अपने अधीन में ले लेते थे. अंग्रेज़ों की इस नीति को ‘हड़प नीति’ के नाम से भी जाना जाता था. सन 1857 में कई भारतीय राजाओं ने अंग्रेज़ों की इस नीति के ख़िलाफ़ बग़ावत कर दी. इसके बाद 1858 में ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया ने इस ‘हड़प नीति’ को बंद कर दिया और सभी भारतीय राजाओं के अधिकारों को सुरक्षित रखते हुए दत्तक पुत्रों को भी मान्यता दी.  

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इस तरह से भारत में लगभग 565 देशी रियासते अंग्रेज़ों के शासनकाल में भी कायम रही.

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