आज भारत जैसे एक अरब लोगों के बाज़ार में ब्रांड उपभोक्ता के दिमाग़ में जगह बनाने के लिए एड़ी-चोटी का ज़ोर लगाते हैं. हालांकि, बीते दौर में बात अलग थी. उदारीकरण यानि Liberalisation से पहले भारत में हर उद्योग में केवल कुछ ही ब्रांड हुआ करते थे. भारतीय उपभोक्ता उनको सर-आंखों पर बिठाते थे. मगर आज जब हम पीछे मुड़कर देखते हैं, तो पाते हैं कि उनमें से कई ब्रांड गुमनामी में अंधेरे में खो चुके हैं.

चलिए जानते हैं उन पुराने भारतीय ब्रांड्स के बारे में जिनका कभी भारतीय बाजार में ख़ूब बोलबाला था:

1. Murphy रेडियो

अगर आपने ‘बर्फ़ी’ फ़िल्म देखी है तो Murphy रेडियो और पुराने दौर में इसके प्रभाव के बारे में आप थोड़ा-बहुत जानते होंगे.1960-70 के दशक में जब मनोरंजन और सूचना का एकमात्र साधन रेडियो हुआ करता था, तो मर्फ़ी रेडियो भारत में सबसे मशहूर ब्रांड था. घर में मर्फ़ी रेडियो का होना Status Symbol था. प्रत्येक अमीर परिवार में एक मर्फ़ी रेडियो या बुश रेडियो सेट होता था, जो लकड़ी के एक बड़े कैबिनेट के अंदर लगाया गया ट्रायोड वाल्व रेडियो था. मीडियम वेव या शॉर्ट वेव रेडियो स्टेशनों के नाम डायल पैनल पर लिखा होता था. साथ ही वॉल्यूम और ट्यूनिंग के लिए दो बड़े नॉब्स होते थे. आज आपको ये रेडियो कबाड़ख़ानों में भी नहीं मिलेगा.

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2. प्रीमियर पद्मिनी कार 

90 के दशक से पहले भारत में सिर्फ़ दो कारों का बोल-बाला था. एक थी हिंदुस्तान एम्बेसडर और दूसरी प्रीमियर पद्मिनी. प्रीमियर पद्मिनी का असली नाम ‘Fiat 1100 Delight’ था, जिसका निर्माण Fiat के लाइसेंस के तहत Premier Automobiles करती थी. भारत में इस कॉम्पैक्ट कार का निर्माण 1964 से लेकर 2000 तक हुआ था. प्रीमियर पद्मिनी युवाओं और महिलाओं के बीच काफ़ी मशहूर हुआ करती थी. 

एंबेसडर की तुलना में ये कार दिखने में ज़्यादा मॉडर्न, ज़्यादा माइलेज देने वाली और ड्राइव करने में आसान थी. हालांकि, प्रीमियर पद्मिनी केवल पेट्रोल वर्ज़न में ही उपलब्ध थी और इसकी पहुंच उच्च मध्यम वर्ग तक सीमित थी. 1980 के दशक के अंत में मारुति सुजुकी ने सस्ती और ज़्यादा Fuel-efficient कारों के आने के साथ पद्मिनी का रुतबा जाता रहा.

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3. डायनोरा TV

क्राउन, ऑरसन, डायनोरा, वेस्टन – ये वो नाम हैं जिनका टीवी मार्केट में ख़ूब नाम था. जब भारत में टीवी आया तो इन्हीं कंपनियों के पास टीवी बनाने का लाइसेंस था. इनमें से डायनोरा का मार्केट शेयर सबसे ज़्यादा था. 1975 में लॉन्च हुआ ये ब्रांड डायनाविज़न कंपनी का हिस्सा था, जो तमिलनाडु औद्योगिक विकास निगम और एक उद्यमी ओबुल रेड्डी के बीच Joint Venture था. आगे आने वालों सालों में जापानी और कोरियाई ब्रांड्स के आगमन के साथ ही डायनोरा का अंत हो गया. Onida उस युग का एकमात्र ऐसा ब्रांड है जो विदेशी ब्रांड्स के सामने टिक पाया.

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4. Konica

दुनिया के डिजिटल होने से पहले, डिजिटल कैमेरों के आगमन से पहले कैमरा में फ़िल्म रील होती थी, जिसे डेवलप कर के फ़ोटो बनाया जाता था. उस समय Konica और Kodak ही दो ऐसे ब्रांड थे जिनका इस पूरे मार्केट में दबदबा था. इनके ब्रांडेड कलर लैब्स हर भारतीय शहर में थे. लोगों ने शायद ही किसी और काम नाम सुना था.

Konica ने 1980 के दशक की शुरुआत में भारत में प्रवेश किया और अपने 35mm रंगीन फ़िल्म रोल को 120 रुपये में बेचना शुरू किया, जबकि Kodak के रोल महंगे थे. 2000 के दशक की शुरुआत में फ़िल्म फ़ोटोग्राफ़ी का पतन शुरू हो गया था. 2003 में Konica का Minolta के साथ विलय हो गया. 2006 में Konica Minolta ने पूरी तरह से फ़ोटोग्राफ़ी बिज़नेस से बाहर निकल गई और Kodak ने 2012 में ख़ुद को दिवालिया घोषित कर दिया.

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5. HMT घड़ी 

1953 में भारत सरकार ने हिंदुस्तान मशीन टूल्स (HMT) की स्थापना की थी. आगे चलकर इस कंपनी ने घड़ियां, ट्रैक्टर, प्रिंटिंग मशीनरी, प्रेस, डाई कास्टिंग, प्लास्टिक प्रोसेसिंग मशीनरी, CNC सिस्टम और बियरिंग्स बनाने के क्षेत्र में क़दम रखा. 

HMT की घड़ियां देखते-देखते इतनी मशहूर हुई कि लगभग हर किसी की कलाई पर ये दिख जाती थी. अपने सुनहरे दिनों में HMT Watches कलाई घड़ियों की सबसे बड़ी आपूर्तिकर्ता और सबसे मशहूर ब्रांड था. सितंबर 2016 में भारत सरकार ने HMT के कुछ डिवीजनों को बंद कर दिया जिसमें HMT Watch लिमिटेड भी था. इसका पीछे मुख्य कारण ये था कि कंपनी एक दशक से अधिक समय से घाटे में चल रही थी.

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6. Campa Cola

कैम्पा कोला (Campa Cola) पूरी तरह से स्वदेशी कोल्ड ड्रिंक था जिसका 1970-80 के दशक में भारतीय बाज़ार पर एकाधिकार था. इसमें कोला का स्वाद बहुत तगड़ा था और ये Thums Up की तरह बहुत Fizzy भी था. 1990 के दशक में कोका कोला आई और उसने Gold Spot, Limca, Double 7, Thrill, Double Cola, आदि ब्रांड्स को बाज़ार से बाहर का रास्ता दिखा दिया. कैम्पा कोला भी इसका शिकार हुआ. 

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7. हमाम और मोती साबुन 

एक ज़माना था जब भारत में साबुन का दूसरा नाम Lux, Lifebuoy, Dove न होकर हमाम और मोती थे. मूल रूप से ये  टाटा ऑयल मिल्स कंपनी का उत्पाद था मगर कंपनी ने 1993 में इसे हिंदुस्तान यूनिलीवर को बेच दिया था. 1998 में हमाम को राष्ट्रीय से क्षेत्रीय प्रोडक्ट के रूप में डाउनग्रेड किया गया, और मोती लगभग-लगभग बाज़ार से रुख़्सत हो गया.

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8. Eveready Torch

आज के समय में अलग से टॉर्च लेकर चलना बेवकूफ़ी लग सकता है, मगर स्मार्टफ़ोन के आने से पहले टॉर्च हर घर में मिलती थी. टॉर्च के बिना शायद ही कोई रात को घर से बाहर जाता था. Stainless Steel से बने टॉर्च में बड़ी बड़ी बैटरियां डलती थी. इस मामले में Eveready ब्रांड सबसे जाना-माना था. Eveready का टॉर्च सबसे बढ़िया माना जाता था. नई सदी अपने साथ मोबाइल फ़ोन लाई और उसके साथ आया टॉर्च, और इसी के साथ Eveready टॉर्च बाज़ार से बाहर हो गए.

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अब ये ब्रांड्स सिर्फ़ लोगों की यादों में ज़िंदा हैं.