मिर्ज़ा हादी रुसवा ने उर्दू में पहला उपन्यास, ‘उमराव जान अदा’ लिखा था. कहते हैं इस उपन्यास की प्रेरणा रुसवा को हैदराबाद की एक शायरा थीं. नाम था मह लक़ा चंदा. भारत का दक्कनी क्षेत्र अपने सशक्त महिलाओं के लिए मशहूर है. इतिहास गवाह है कि चाहे कोई भी राज्यवंश हो, निज़ामी घराना हो, महिलाओं ने अपना सिक्का जमाया था. दक्कन की है एक नारीवादी, शिक्षित, ग़ज़ब की शायरा और फ़नकारा थीं मह लक़ा चंदा.
कौन थी मह लक़ा चंदा?
मह लक़ा चंदा एक 18वीं सदी की शायरा, कलाकार, कथक नर्तकी, योद्धा, शिक्षाविशारद और उस ज़माने की रईस महिलाओं में से एक थीं. The Heritage Lab के एक लेख के अनुसार, मह लक़ा ने अपनी जीवनी में लिखा था कि उनकी मां का नाम राज कुंवर बाई था जो अहमदाबाद से हैदराबाद में आ बसीं थीं. निज़ाम की राजधानी, औरंगाबाद जाते समय एक कहानीकारों के समूह से कुंवर बाई ने संगीत और नृत्य कौशल सीखा. अपनी ख़ूबसूरती और कला के कारण राज कुंवर बाई बहुत मशहूर थीं.
कई ख़ासम-ख़ासों की ख़ास
बीतते वक़्त के साथ मह लक़ां बाई लोगों के सामने अपनी कला-कौशल का प्रदर्शन करने लगी. मह लक़ा की मौजूदगी हैदराबाद के ख़ासम-ख़ास लोगों पर कोई जादू सा कर देता था. Live History India के एक लेख के अनुसार, मह लक़ा के हैदराबाद के 2 निज़ाम, 3 वज़ीर-ए-आज़म के अलावा कई अन्य लोगों से निजी संबंध थे.
दीवान छपवाने वाली पहली शायरा
मह लक़ा के दौर में दक्कनी उर्दू फ़ारसी उर्दू में बदल रही थी. मह लक़ा के लिखे ग़ज़लों में ये बात साफ़ झलकती है. मह लक़ा की लेखनी में इश्क़, वफ़ा से लेकर साज़िश, दुश्मनी का अक्स नज़र आता है. मह लक़ा के ग़ज़लों के साथ दर्शकों को कई बार दक्कनी कथक भी देखने को मिलता था.
न ‘चंदा’ को तमअ जन्नत की ने ख़ौफ़-ए-जहन्नम हैरहे है दो-जहाँ में हैदर-ए-कर्रार से मतलब
-मह लक़ा चंदा
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निज़ाम के दरबार में अहम पदवी
The Better India के एक लेख के अनुसार, 15 साल की उम्र में मह लक़ा ने निज़ाम के दरबार में प्रवेश किया. Live History India के लेख के मुताबिक़, अरस्तु जाह(दूसरे निज़ाम के वज़ीर-ए-आज़म) ने बहुत छोटे से ही मह लक़ा को दूसरे निज़ाम के नज़दीक पहुंचने के लिए तैयार किया था.
निज़ाम के दरबार में मह लक़ा को ‘ओमराह’ की पदवी भी मिली थी. इस पदवी का मतलब था कि वो न सिर्फ़ दरबार आ सकती थीं बल्कि निज़ाम को राजनैतिक मसलों पर सलाह भी दे सकती थीं.
एक मराठा योद्धा से थी सच्ची मोहब्बत
मह लक़ा के कितने पुरुषों से घनिष्ठ संबंध थे ये बताना मुश्किल है लेकिन बहुत सारे पुरुष उन पर निर्भर थे. Live History India के एक लेख के अनुसार, मह लक़ा को राजा राव रंभा जयवंत बहादुर से मोहब्बत थी और उनके कई ग़ज़लों में इसका ज़िक्र मिलता है. राजा राव मराठाओं के ख़िलाफ़ लड़े थे और दूसरे निज़ाम के सेनाध्यक्ष थे. राजा राव ने ब्रिटिश और निज़ाम की सेना के साथ मिलकर टिपू सुल्तान के ख़िलाफ़ बी युद्ध लड़ा था.
आख़िरी शेर अली के नाम
हैदराबाद के दरबार के कई राजनैतिक फ़ैसलों के पीछे मह लक़ा बाई का नीति-कौशल था लेकिन उनकी ज़िन्दगी में मज़हब की भी जगह थी. हर ग़ज़ल का आख़िरी शेर वो अली (शिया मत के पहले अमीर) के नाम लिखती थीं. हैदराबाद में पैगंबर मोहम्मद के दामाद मौला अली के दरगाह के लिए दिल खोल कर दान करती थी.
लड़कियों को शिक्षित करने में योगदान
The Better India के एक लेख की मानें तो मह लक़ा बाई का योगदान सिर्फ़ साहित्य तक ही सीमित नहीं था. वो एक बहुत बड़ी नारीवादी थीं और लड़कियों की शिक्षा के लिए उस ज़माने में 1 करोड़ रुपये दान किए थे. उन्होंने एक सांस्कृतिक सेन्टर भी बनवाया था जहां 300 लड़कियों और कई उस्ताद थे.
मह लक़ा एक रईस घराने में ज़रूर पली-बढ़ी लेकिन उन्होंने अपनी कला-कौशल से हैदराबाद रियासत में अपना रुतबा बनाया. दुख की बात है कि इस महिला का नाम आज इतिहास में कहीं गुम हो गया है.
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