जो हमारे काम की चीज़ें नहीं होतीं उसे हम रद्दी वाले या कबाड़ी को बेच देते हैं. फिर वो मेटल हो, शीशा हो, काग़ज़, कपड़े आदि हों. जो हमें कूड़े में फेंकने या रद्दीवाले को देने योग्य लगता है बहुत सारे लोग उसमें सोना ढूंढ लेते हैं. अपनी कलाकौशल और टैलेंट (Talent) से कुछ ऐसा बना देते हैं जिसका मोल सोने से भी ज़्यादा हो जाता है.

ऐसे ही एक शख़्स हैं, श्रीनिवास पादकंदला जो ऑटोमोबाईल मेटल स्क्रैप (Automobile Metal Scrap) से मूर्तियां बनाते हैं.

आमतौर पर आर्ट गैलरीज़ (Art Galleries) में एक ख़ास तबके के लोग ही जाते हैं और आर्ट का लुत्फ़ उठाते हैं. इस सूरत को बदलने की कोशिश करते हुए प्रोफ़ेसर श्रीनिवास अपनी कलाकृतियां किसी आर्ट गैलरी में नहीं लगाते बल्कि उनका पब्लिक डिस्प्ले करते हैं. ऐसा करने के पीछे उनका एक और उद्देश्य है और वो है- Upcycling को बढ़ावा देना.

हम जो मेटल स्कल्पचर्स (Metal Sculptors) बनाते हैं उन्हें म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन की मदद से पब्लिक पार्क्स में लगाते हैं ताकि बच्चे से लेकर बूढ़ों तक हर कोई इन्हें देख सकता है.
-श्रीनिवास पादकंदला

श्रीनिवास के पास जूनियर्स, सब-जूनियर्स और छात्रों की एक टीम है जो उनकी सहायता करती है. ऑटोमोबाईल स्क्रैप को आर्ट में बदलने में ज़्यादा दिन नहीं लगते. उन्होंने बताया कि 15 फ़ीट के एक मॉडल को बनाने में 1 हफ़्ते का समय लगता है. श्रीनिवास और उनकी टीम स्थानीय अधिकारियों के साथ एग्रीमेंट करती है और 5 साल तक मॉडल के मेन्टेनेन्स का दायित्व लेती है.

2016 और 2018 में विजयवाड़ा म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन ने शहर के सौंदर्यीकरण के काम-काज के लिए प्रोफ़ेसर श्रीनिवास की मदद ली थी. इसके अलावा 2017 में गुंटूर म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन, थोट्टूकुडी म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन, 2018 में अनंतपुर और हिन्दुपूर अर्बन डेवलपमेंट अथॉरिटी, 2019 में ग्रेटर चेन्नई म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन ने अपने-अपने शहरों में उनके मॉडल लगाए.

एक बात हमें समझनी चाहिए कि Upcycling सिर्फ़ शौक़ नहीं आज की ज़रूरत है और सभी को ये ट्राई करना चाहिए.
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