भारत अपनी महान हस्तियों के साथ-साथ कुख़्यात डाकुओं के लिए भी जाना गया है. एक समय यहां के बीहड़ और जंगलों में ख़तरनाक डाकुओं का राज था. भारत में कई कुख़्यात डाकू हुए जिनमें वीरप्पन और फूलन देवी ज़्यादा चर्चा में रहे. लेकिन, इनमें एक डाकू ऐसा भी था, जिसका नाम ही ख़ौफ़ पैदा करने के लिए काफ़ी था. उस ख़तरनाक डाकू का नाम था ‘सुल्ताना’. आइये, इस ख़ास लेख में आपको बताते हैं सुल्ताना डाकू के क़िले और इससे जुड़े गांव ख़ूनीबड़ की दिलचस्प कहानी.
सुल्ताना डाकू का ख़ौफ़
माना जाता है कि 20वीं शताब्दी के शुरुआती समय में उत्तर प्रदेश के नज़ीबाबाद से लेकर कोटद्वार क्षेत्र तक सुल्ताना डाकू का ख़ौफ़ था. वहीं, उसका राज बिजनौर से लेकर कुमाऊं तक में चलता था.
लूटने से पहले देता था सूचना
सुल्ताना डाकू के बारे में कहा जाता है कि वो जहां लूट करने जाता था, वहां के लोगों को लूट की सूचना पहले ही दे देता था. वहीं, उसके बारे में यह भी कहा जाता है कि उसने किसी ग़रीब को नहीं लूटा.
लूट से जुड़ा दिलचस्प क़िस्सा
कहते हैं कि कोटद्वार-भाबर क्षेत्र के एक जाने-माने ज़मीदार उमराव सिंह के यहां सुल्ताना डाकू ने सूचना भिजवाई कि वो फलाने दिन उसके घर को लूटने आ रहा है. उमराव सिंह काफ़ी ग़ुस्सा हुए उन्होने पुलिस को इसकी जानकारी देने के लिए अपने एक नौकर को चिट्ठी देकर थाने जाने को कहा. नौकर को रास्ते में सुल्ताना डाकू के साथी मिले. चूंकि डाकू भी पुलिस की जैसी है वर्दी पहना करते थे, इसलिए नौकर ने ग़लती से वो चिट्ठी सुल्ताना डाकू के साथियों के हाथों में थमा दी. फिर क्या था, सुल्ताना डाकू ज़मीदार उमराव सिंह के घर पहुंचा और उसे गोली मार दी. अगर ज़मीदार ऐसी भूल न करता, तो कम से कम उसकी जान बच जाती.
सुल्ताना डाकू के क़िले का ख़ज़ाना
कहते हैं कि चार सौ साल पहले नज़ीबाबाद में नवाब नज़ीबुद्दौला ने एक क़िला बनवाया था. बाद में इस पर सुल्ताना डाकू ने कब्ज़ा कर लिया था. आज यह क़िला खंडहर अवस्था में पड़ा है. कहा जाता है कि क़िले के बीच में एक तालाब हुआ करता था, जहां सुल्ताना ने अपना लूट का ख़ज़ाना छुपाया था. जब दबे ख़ज़ाने की ख़बर पता चली, तो यहां खुदाई भी की गई, पर ख़ज़ाने का कोई पता नहीं चला.
ख़ूनबड़ी गांव
जैसा कि हमने ऊपर बताया कि कोटद्वार-भाबर क्षेत्र में सुल्ताना डाकू का काफ़ी खौफ़ था. वहीं, भाबर में ख़ूनबड़ी गांव था, जहां एक बड़ा पेड़ था. लोगों के अनुसार, सुल्ताना डाकू लोगों को मारकर इसी पेड़ पर टांग दिया करता था. इसी वजह से इस गांव का नाम ख़ूनबड़ी पड़ा.
सुल्ताना की गिरफ्तारी
कहते हैं कि सुल्ताना डाकू को पकड़ने के लिए 1923 में 300 सिपाहियों और पचास घुड़सवारों की फ़ौज ने गोरखपुर से लेकर हरिद्वार तक ताबड़तोड़ छापेमारी की थी. वहीं, सुल्ताना डाकू को 14 दिसंबर 1923 को नजीबाबाद के जंगलों से गिरफ़्तार किया गया और हल्द्वानी जेल में बंद कर दिया गया था. उसे फांसी की सज़ा सुनाई गई और 8 जून 1924 को उसे फांसी से लटका दिया गया.