History Of ATM: ATM भारत में क़रीब दो दशकों से रुपयों का ट्रांजैक्शन करने के लिए सबसे लोकप्रिय और और अच्छा माध्यम बना हुआ है. आज के समय में एटीएम की सुविधा शहर से लेकर कस्बों तक हर जगह है. आज भले ही गूगल पे, फ़ोन पे जैसी तमाम एप्स के ज़रिए लोग रुपयों का लेन-देन कर रहे हैं. लेकिन फिर भी रुपए निकालने और जमा करने के लिए आज भी बहुतायत रूप से एटीएम का उपयोग किया जाता है. साल 2016 में नोटबंदी के दौरान एटीएम की ज़रूरत चार गुनी बढ़ गई थी. उस दौरान लोगों को पैसे निकालने के लिए कई महीनों तक एटीएम के बाहर लंबी-लंबी लाइनें लगाते देखा गया था. 

यूं कह लें कि एटीएम ने हमारी ज़िंदगी को सरल बनाने का काम किया है, तो बिल्कुल ग़लत नहीं होगा. क्योंकि अगर इतिहास के पन्ने पलटकर देखें, तो एक दौर वो भी हुआ करता था, जब पैसे जमा करने और निकालने में लोगों को काफ़ी मशक्कत करनी पड़ती थी और बैंक्स पर आश्रित रहना पड़ता था. जिस वजह से बैकों में भारी भीड़ हर समय रहती थी. फिर एटीएम का दौर आया और हमारी ज़िंदगी आसान हो गई. 

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अब सवाल उठता है कि एटीएम लगाने का दिलचस्प आइडिया किस के मन में आया था और इसकी शुरुआत आख़िर (History Of ATM) हुई कहां से थी? आज हम आपको इस बारे में पूरी A टू Z जानकारी देंगे. 

History Of ATM

कहां से हुई थी एटीएम की शुरुआत? 

एटीएम को ऑटोमेटेड टेलर मशीन भी कहा जाता है. इसकी शुरुआत 27 जून 1967 को ब्रिटेन के लंदन में हुई थी. ये मशीन भारत में जन्मे ब्रिटिश मूल के जॉन शेफ़र्ड बैरोन ने बनाई थी, क्योंकि वो बैंक की लंबी लाइन में खड़े होते-होते परेशान हो गए थे. उन्हें ये आइडिया तब सूझा, जब उन्होंने चॉकलेट वेंडिंग मशीन को काम करते हुए देखा. उन्होंने सोचा जब कोई मशीन कॉफ़ी दे सकती है, तो पैसे क्यूं नहीं. इसके बाद उन्होंने इस पर काम शुरू किया और इसे बनाते-बनाते दो साल लग गए. शुरुआत में उन्होंने 6 अंकों का पिन रखा था, लेकिन पत्नी को याद ना रहने की वजह से उन्होंने इसे 4 अंकों का कर दिया. उस दौरान एक बार में 10 पाउंड यानि आज के हिसाब से क़रीब 1 हज़ार रुपए ही निकलते थे. (History Of ATM)

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कैसे काम करती थी पहली एटीएम मशीन? 

साल 1977 में पहली बार सिटी बैंक ने न्यूयॉर्क में एटीएम लगाने के लिए 100 मिलियन डॉलर ख़र्च किए. वो सिटीबैंक ही थी, जिसने सबसे पहले एटीएम का उपयोग करने का बढ़ावा दिया था. पहली एटीएम मशीन में शेफ़र्ड ने पैसे निकालने के लिए किसी भी कार्ड का उपयोग नहीं किया था. उन्होंने कार्बन 14 से प्रिंटेड एक चेक लगाया था. जिसके बाद मशीन पहले अकाउंट का चेक से मिलान करती थी और मिलान हो जाने पर कैश बाहर निकलता था. हालांकि, समय के साथ तकनीक में बदलाव आया और एटीएम एडवांस होते चले गए. आज के समय में मैग्नेटिक चिप वाले डेबिट और क्रेडिट कार्ड से पैसे निकाले जाते हैं. इसके अलावा UPI के ज़रिए भी कैश निकाला जाता है. दुनिया में एटीएम के अलग-अलग नाम भी हैं. उदाहरण के तौर पर ऑस्ट्रेलिया में इसे ‘मनी मशीन‘ और यूके व न्यूज़ीलैंड में इसे ‘कैश पॉइंट‘ कहा जाता है.

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भारत में कब आया एटीएम? 

90 के दशक में भारत में भी एटीएम की एंट्री हो चुकी थी. साल 1987 में देश का पहला एटीएम शुरू हुआ था. मुंबई में एचएसबीसी की शाखा ने इसे लगाया था. भारत में एटीएम मशीन लगने से पहले लोग बैंकों से ही रुपयों का लेन-देन करते थे. हालांकि, एटीएम मशीन लगने के बाद देशभर में पैसे निकालने के लिए बैंकों में भीड़ कम होती चली गई. जनवरी 2022 तक भारत में 940 मिलियन से अधिक सक्रिय डेबिट कार्ड हैं. 

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एटीएम आज के समय में हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन चुका है.