भारत के इतिहास में 1962 का युद्ध बहुत अहमियत रखता है, भले इस युद्ध में हम चीन से हार गए थे मगर भारतीय सेना के जवानों ने चीनी सैनिकों का डटकर मुकाबला किया था. भारत-चीन युद्ध के कई महावीरों की गाथा आज भी देश के कोने-कोने में सुनाई जाती है.
ऐसे ही एक वीर योद्धा थे सूबेदार जोगिंदर सिंह, जिन्होंने अपनी मातृभूमि के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी थी. इनकी कहानी आज हम आपके लिए लेकर आए हैं.
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15 साल की उम्र में ज्वॉइन कर ली थी आर्मी
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सूबेदार जोगिंदर सिंह(Subedar Joginder Singh) पंजाब के फरीदकोट ज़िले के मोगा के रहने वाले थे. वो बचपन से ही इंडियन आर्मी में भर्ती होने का सपना देखते थे. यही वजह है कि 15 साल की उम्र में उन्होंने ब्रिटिश इंडियन आर्मी ज्वॉइन कर ली थी. वो सिख रेजीमेंट का हिस्सा थे. आज़ादी के बाद 1948 में जब पाकिस्तानी कबाइलियों ने भारत पर युद्ध किया था तब भी उन्होंने दुश्मनों से लोहा लिया था.
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चीन ने कर दिया हमला
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इसके बाद उनकी तैनाती भारत-चीन बॉर्डर पर हो गई. 1962 में जब चीन ने हमला किया तब जोगिंदर सिंह IB Ridge और Twin Peaks की रक्षा अपने 20 सैनिकों के साथ कर रहे थे. ट्विन पीक पर हमला किए बगैर चीन भारत के तवांग पर कब्जा नहीं कर सकता था, इसलिए उन्होंने मौक़ा देखते ही 23 अक्टूबर 1962 को ट्विन पीक पर हमला कर दिया. बम ला पर असम राइफ़ल्स के सैनिकों को तीनों और से घेरने के बाद उन्हें लग रहा था कि वो इस पर भी आसानी से कब्जा कर लेगें.
चीन की दो टुकड़ियों को खदेड़ा
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मगर वो ग़लत थे, सुबेदार जोगिंदर सिंह और उनकी बटालियन ने खाई का फ़ायदा उठाकर उनकी गोलियों का ताबड़तोड़ जवाब दिया. उन्होंने चीनी सैनिकों की एक बड़ी टुकड़ी को खदेड़ दिया था. चीन ने फिर से क़रीब 200 सैनिकों की टुकड़ी को वहां भेजा इस बार जोगिंदर सिंह के बहुत से सैनिक घायल हो गए. इनको भी भगाने के बाद भारतीय सैनिकों के पास असला-बारूद कम पड़ गया था.
पीछे हटने से कर दिया था इनकार
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जोगिंदर सिंह ने अपने कमांडर लेफ़्टिनेंट हरिपाल कौशिक से गोला-बारूद भेजने को कहा. मगर उस समय वहां तक गोला-बारूद पहुंचाना मुश्किल था, इसलिए उन्होंने पीछे हटने को उनसे कहा. मगर जोगिंदर और उनके सैनिकों ने पीछे हटने से इनकार कर दिया. सुबेदार जोगिंदर सिंह भी घायल हो चुके थे, लेकिन वो न ख़ुद पीछे हटे बल्कि अपने घायल सैनिकों को भी दुश्मन का डटकर सामना करने को प्रेरित किया.
घायल अवस्था में भी मार गिराए 50 दुश्मन
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चीन ने तीसरी बार 200 सैनिकों की एक और टुकड़ी भेजी, इनका भी सामना भारतीय सैनिकों ने बड़ी ही दिलेरी से किया. मगर गोला-बारूद ख़त्म होने के चलते उन्हें आत्मसमर्पण करना पड़ा. आत्मसमर्पण से पहले भारतीय सैनिकों ने बिना हथियार के चीनी सेना के 50 सैनिकों मार गिराया था. 23 अक्टूबर 1962 को सूबेदार जोगिंदर सिंह युद्धबंदी के रूप में उन्होंने दम तोड़ दिया. इसके बाद उनका अंतिम संस्कार चीनी सैनिकों ने किया.
परमवीर चक्र से हुए सम्मानित
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चीन सरकार ने 17 मई 1963 को भारत को उनकी अस्थियां सौंपी थीं. सूबेदार जोगिंदर सिंह को भारत-चीन युद्ध में वीरता से लड़ने के लिए मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया था.