‘चमकी’ बुखार से अब तक बिहार के अलग-अलग ज़िलों में 136 से ज़्यादा बच्चों की मौत हो चुकी है और इससे 600 से ज़्यादा बच्चे पीड़ित हैं. बिहार स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी की गई रिपोर्ट के अनुसार, इस रोग से सबसे ज़्यादा प्रभावित मुज़फ्फ़रपुर के बच्चे हुए हैं. इसके अलावा भागलपुर, पूर्वी चंपारण, वैशाली, सितामढ़ी और समस्तीपुर के बच्चों को भी ‘चमकी’ बुखार हुआ है.


रिपोर्ट के अनुसार कुछ बच्चे Hypoglycemia, जापानी Encephalitis और Herpes से भी पीड़ित हुए हैं.  

2014 में भी Encephalitis से बिहार में कई मासूम बच्चों की जान गई थी.  

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मुज़फ्फ़रपुर के एसकेएमसीएच अस्पताल में अब तक कई मंत्री चक्कर लगा चुके हैं. केन्द्रिय स्वास्थय मंत्री हर्षवर्धन, राज्य के मुख्यमंत्री भी यहां पहुंचे मगर उन्हें स्थानीय निवासियों के पुरज़ोर विरोध का सामना करना पड़ा. 

केन्द्र से मदद 

केन्द्रीय स्वास्थय मंत्री हर्षवर्धन और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के दौरे के बावजूद भी मुज़फ्फ़रपुर के एसकेएमसीएच अस्पताल में एक बिस्तर पर 3-3 मरीज़ों को एडजस्ट किया जा रहा है. मरीज़ सैंकड़ों और उनके लिए बिस्तर कम. मीडिया रिपोर्ट्स खंगालने के बाद भी हमें कहीं से ये पता नहीं चला कि केन्द्र या राज्य सरकार द्वारा इलाज के लिए कितनी राशि मुहैया करवाई गई है.  

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जनता का रवैया 

मुज़फ्फ़रपुर के एक सामाजिक कार्यकर्ता, तमन्ना हाशमी ने शहर में जगह-जगह तेजस्वी यादव के नाम के साथ ‘लापता’ पोस्टर लगाए.

वैशाली के हरिवंशपुर गांव में लोक जनशक्ति पार्टी के विधायक, पशुपति कुमार पारस का भी विरोध किया गया. नेताजी दवाइयां और मृतक बच्चों के परिवारों को 5-5 हज़ार रुपए बांटने आए थे. ग्रामवासी पानी की गंभीर समस्या से जूझ रहे थे और अपने सांसद (केन्द्रीय मंत्री राम विलास पासवान) का पता देने वाले को 15 हज़ार का इनाम देने का पोस्टर लगाया था.


ANI की रिपोर्ट के मुताबिक, नेताओं ने पानी और बच्चों की मृत्यु का विरोध करने वाले हरिवंशपुर के 39 गांववालों के विरुद्ध एफ़आईआर दर्ज करवाई है.   

आम नागरिकों द्वारा मदद 

सरकार की नींद टूटने में जब देर होने लगी, तो कई आम नागरिक बच्चों और उनके परिजनों की सहायता के लिए आगे आए.


स्थानीय निवासियों ने एकजुट होकर पीड़ितों के परिजनों को खाना खिलाने का इंतज़ाम किया    

नेताओं ने क्या-क्या कहा 

वैशाली की सांसद, मीना देवी से जब पत्रकारों ने सवाल पूछा तो उनका जवाब ये था,


‘वैशाली के गांव में नहीं मर रहे हैं बच्चे…पहले आप जानिए न, जानिएगा तब न बात कीजिएगा…’

मुज़फ्फ़रपुर के सांसद, अजय निशाद ने ये कहा,


‘ठोस कदम की ज़रूरत है. मरने वाले बच्चों की संख्या कैसे ज़ीरो हो इस पर काम करने की ज़रूरत है… मेरा मानना है कि 4जी (गांव, गर्मी, गरीबी और गंदगी) से इस बीमारी का ताल्लुक है…’  

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार में ‘चमकी’ बुखार से मरने वाले बच्चों पर ये कहा, 

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पत्रकारों ने भी की मदद 

सोशल मीडिया पर कई पत्रकारों ने भी क्राउडफ़ंडिंग शुरू की. पत्रकार आनंद दत्ता  ने एसकेएमसीएच में कैंप लगाया. मरीज़ों के परिजनों के खाने और पीने के पानी प्रबंध किया. 3 वॉटर प्यूरिफ़ायर लगवाए. इसके अलावा अस्पताल के 13-14 प्यूरिफ़ायरों को ठीक भी करवाया. अस्पताल में कई पंखे भी ख़राब पड़े थे, जिसे उन्होंने ठीक करवाया.  

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स्थानीय पत्रकार, आमिर हमज़ा  ने पानी टंकी चौक से रिपोर्टिंग के दौरान एक बच्चे को अपने बाइक पर बैठाकर नज़दीकी अस्पताल में भर्ती करवाया. 

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पत्रकारों की भावशून्यता  

रिपोर्टिंग करते-करते कई पत्रकार ICU में घुसे. कुछ पत्रकारों ने इसके लिए क्षमा मांगी, वहीं कुछ पत्रकार डॉक्टर से ही भिड़ गए. आजतक की पत्रकार अंजना ओम कश्यप  ने भी यही किया. इसके लिए उन्हें सोशल मीडिया पर काफ़ी झाड़ पड़ी. 

हमारा सवाल ये है कि जब सभी को बीमारी का कारण, ये कैसे फैलता है, क्यों फैलता है, सब पता है तो इससे निपटने के लिए पहले ही कदम क्यों नहीं उठाए जाते. कहने को भारत देश इतनी बड़ी अर्थव्यवस्था है पर क्या यहां मासूम बच्चों की ज़िन्दगी की कोई क़ीमत नहीं?