12-13 की उम्र होते ही एक बच्ची बड़ी हो जाती है, मतलब उसके पीरियड्स आ जाते हैं. मांएं उन्हें बताने लग जाती हैं कि अब थोड़ा ध्यान रखना, ऐसे ही हर जगह मत जाना. अपनी डेट का ध्यान रखो फलाना-ढिमकाना. वैसे ये सही भी है क्योंकि उस वक़्त बच्ची बहुत छोटी होती है. उसे ये सब बताना ज़रूरी होता है.

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धीरे-धीरे वो लड़की अपने इस बदलाव को स्वीकार कर लेती है, लेकिन जिसे वो शारीरिक बदलाव समझती है. उसे आस-पास के लोग घिन समझते हैं. अरे जैसे भगवान ने सबको नाक, कान, मुंह, हाथ और पैर दिए हैं वैसे ही ये पीरियड हमारे शरीर का हिस्सा हैं. उसे घिन से क्यों देखा जाता है? मुझे तो समझ नहीं आता है.

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आश्चर्य तब होता है जब इस पर लड़के अपनी राय रखते हैं और वो भी वो लड़के जिन्हें इनके बारे में कुछ पता नहीं होता है. अगर उनसे पूछ लो तो वो बोलते हैं कि हां मैंने सुना है कि इसमें दर्द बहुत होता है और फिर तुम लड़कियां बस 4-5 दिन पड़ी रहती हो. बताइए ये है इनकी नॉलेज और ये हमें ज्ञान देते हैं.

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मैं आपको एक बात बताऊं, हाल ही में हम सारे दोस्त साथ में थे, उसमें लड़कियां भी थीं और लड़के भी. इत्तेफ़ाक़ से मेरे पीरियड चल रहे थे तो मैंने बोल दिया कि मैं ट्रिपलिंग नहीं करूंगी. अब खुल के क्या बोलती तो मैंने बोल दिया समझा करो? मगर उनमें से जो लड़के थे उन्होंने ‘समझा करो’ को कुछ ज़्यादा ही समझ लिया और बोलते हैं कि यार,ये लड़कियों का यही नाटक होता है. मुझे गुस्सा तो बहुत आया, लेकिन मैं सबका मूड नहीं ख़राब करना चाहती थी और चुप हो गई.

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तभी मेरी एक दोस्त ने बताया कि उसका बॉयफ़्रेंड उसके पीरिड्स आते ही उससे लड़ने लग जाता है. क्योंकि इस टाइम पर मूड स्विंग्स होते हैं और उसे ये बिलकुल पसंद नहीं.

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यार, लड़कों तुम लोगों ने क्या पीरियड्स को मुद्दा बना रखा है? हमें दर्द होगा तो तुम्हें ‘नाटक’ लगता है. हम अनकंफ़र्टेबल होते हैं तो तुम्हें ‘नाटक’ लगता है. हमारे लिए तो ये पीरियड्स सिर्फ़ शारीरिक बदलाव है इसे हव्वा तुम लोगों ने बना दिया है. और बोलते हो कि लड़कियां तो पीरियड्स को बहाना बनाती हैं काम न करने का. बॉस से छुट्टी मांग लो तो उनकी आफ़त आ जाती है, भले ही बाकी दिन पहाड़ क्यों न ढो दो?

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फरवरी का एक वाक्या सुनाती हूं, जब कैब से एक लड़की उतरी तो सीट पर दाग़ था तभी आगे बैठा लड़का बड़बड़ाने लगा कि शर्म नहीं आती है दाग़ छोड़कर चली गई. देवी मइया के मंदिर जा रहे थे सब ख़राब कर दिया, मुझे यहीं उतार दीजिए. जैसे ही वो लड़का उतरा ड्राइवर ने गीला कपड़ा लिया और सीट साफ़ कर दी. तब तक उस गाड़ी में एक सवारी और थी, जो कि लड़की थी. उस लड़की ने पूछा आपको असहज नहीं लगा तो वो ड्राइवर सिर्फ़ मुस्कुराया और चला गया. 

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इतना ही नहीं फ़िल्म ‘आकाशवाणी’ का वो सीन, जिसमें लड़की के पीरियड्स होने पर लड़का कहता है कि हमारे घर में भी मम्मी और बहनों को होता है वो तो आराम नहीं करतीं. इनके पता नहीं कौन से पीरियड्स हैं? इन लड़कों को कौन समझाए सबके शरीर का सिस्टम अलग होता है. तो सबके पीरियड्स के लक्षण भी अलग-अलग होते हैं.

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मेरा ये पूछना है सभी लड़कों से कि तुम्हें पीरियड्स के दौरान बदबू आती है, तुम्हारे कहने से उस वक़्त जो ब्लड निकलता है वो ख़राब होता है. हम लड़कियां नाटक करती हैं. हम अपने पीरियड्स के चलते बहाने बनाते हैं. उस लड़की को छूना भी तुम्हें गंवारा नहीं है. इतनी छोटी सोच कैसे रख लेते हो?

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तुम लोगों की इस सोच पर सिर्फ़ मेरी इतनी राय है कि पहले पूरी तरह से जान लो उसके बाद परपंच करो तो ज़्यादा सही रहेगा.