“मैं उड़ना चाहता हूं, दौड़ना चाहता हूं, गिरना भी चाहता हूं, बस रुकना नहीं चाहता.” 

करन जौहर की सुपरहिट फिल्म, ‘ये जवानी है दीवानी’ के इस डायलॉग ने मुझे भी बहुत प्रेरित किया था. मैंने बहुत सोचा था कि 25 की उम्र तक आते-आते ये कर लूंगी, वो कर लूंगी, लेकिन कर कुछ नहीं पाई. शायद हिम्मत की कमी थी, या वक़्त की. वैसे हैं तो ये सब बहाने ही, आप ने भी बनाए होंगे, सब बनाते हैं.

इस साल 25 की हो जाउंगी. दुनिया को लगता है बहुत बड़ी हो गयी हूं, पर मुझे नहीं लगता, Confused हूं कि सही रास्ते पर हूं या नहीं. पता नहीं, पर ठीक है. सही-गलत का नहीं पता, पर कहीं तो हूं… सीख तो रही हूं.

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शायद और भी होंगे मेरे जैसे जिन्हें पता नहीं है की ज़िन्दगी कहां जा रही है, और कौन ले जा रहा है?

पर ठीक है… कहीं तो जा रही हूं.

’25’, सुनने में ही कितना बड़ा सा लगता है. Early Twenties वाले मौज के दिन अब ख़तम. Late Twenties की ज़िम्मेदारियां संभालने का वक़्त आ गया है, लेकिन डर लगता है. डर लगता है इस सुकून को छोड़ने में. सुकून की आदत सी पड़ गयी है, इन 25 सालों में. अब इन आदतों को कुछ समय के लिए साइड रखने का वक़्त आ गया है. ठीक है… सबका वक़्त आता है. शायद आप सोच रहे होंगे कि क्या लिखे जा रही है? 

मैं भी यही सोच रही हूं… पर लिख तो रही हूं.

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ये जो वक़्त होता है, ये बीच वाला, जहां आप ना तो पूरी तरह से बच्चे रहते हो और ना ही ठीक तरह से बड़े ही. बड़ा ही रोमांचक होता है ये वक़्त. क्योंकि सबसे ज़्यादा Confusion इसी दौर में होता है. ज़िन्दगी के सबसे बड़े फ़ैसले भी इसी दौर में लेने पड़ते हैं. तो ले लेंगे. सही हुए तो जीत मिलेगी, गलत हुए तो सीख. 

पर कुछ तो मिलेगा, खाली हाथ तो नहीं रहेंगे.

घर के मंझले बच्चे की जो व्यथा होती है न, वही हम ’25’ की उम्र वालों की भी होती है. ना इधर के रहते हैं, ना उधर के. कभी सुनने को मिलता है कि ‘अभी बच्चे हो तुम, दुनिया नहीं देखी है’, तो कभी ‘अब तुम बच्चे नहीं रहे, अपनी ज़िम्मेदारियों को समझो’. बड़ी ही असमंजस वाली स्थिति होती है ये.

एक चीज़ और है जिससे मुझे ख़ासा डर लगता है और शायद मेरी उम्र के सभी लोगों को लगता होगा. शादी! सुनने में ही ख़तरनाक लगता है ये शब्द, इसके बारे में सोचना तो बहुत दूर की बात है. रूह कांप-सी जाती है इसके ज़िक्र से ही. घरवाले और रिश्तेदार मान लेते हैं कि, ’25 की हो गयी है, मतलब उम्र हो गयी है अब रिश्ते देखना शुरू कर देना चाहिए’. मगर कोई और कैसे इस निष्कर्ष पर आ सकता है कि यही सही उम्र है. यहां हम जैसे-तैसे करके खुद को संभालना सीख रहे हैं और उसके ऊपर से नए परिवार की ज़िम्मेदारी. ना बाबा ना, फिलहाल तो ना हो पाएगा!

ख़ैर, ये सब रुकावटें नहीं, बल्कि अनुभव हैं. ये वक़्त जो होता है, ये ‘Transition Period,’ ये मज़बूत बनाता है हमें. तैयार करता है हमें, आगे आने वाले वक़्त के लिए क्योंकि, असली पिक्चर तो आगे आएगी… ये तो सिर्फ़ ट्रेलर है.

अरे-अरे डरो नहीं. आपको डराना मेरा मकसद नहीं था. 

अब निकले हैं घर से,तो कहीं तो पहुंचेंगे ही… सफ़र में हैं अभी, तो सफ़र का आनंद लेंगे.

मंज़िल जब आएगी, तब की तब देखेंगे. 

Featured Image Source: huffpost