Hawa Singh Boxer : बॉक्सिंग की जब हम बात करते हैं, तो आमतौर पर सबसे पहला नाम 2008 में इस खेल में ओलंपिक विजेता विजेंद्र सिंह का ध्यान आता है. इसके अलावा मोहम्मद अली, माइक टायसन समेत ऐसे कई बॉक्सर रहे हैं, जिन्होंने ख़ुद को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर साबित किया है.
इनमें से एक बॉक्सर थे हवा सिंह (Hawa Singh). अगर यादों की परत पर जमी धूल को हटाएंगे, तब भी इनके बारे में याद आना थोड़ा मुश्किल है. ऐसा इसलिए क्योंकि उन्होंने उस समय भारत का परचम पूरे विश्व में लहराया, जब इस खेल की भारत में जड़ें मज़बूत भी नहीं हुई थीं. आज हम आपको हवा सिंह नामक उसी तूफ़ान के बारे में बताएंगे, जिन्होंने अपने मुक्के से विरोधियों के हौसले पस्त कर दिए थे.
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हवा सिंह का शुरुआती जीवन
हवा सिंह का जन्म 16 दिसंबर 1937 को गुलाम भारत की धरती पर हुआ था. हरियाणा के भिवानी जिले के उमरवास गांव में जन्मे इस बालक का नाम रखा गया हवा सिंह. हवा माने जो अपनी ही लय में बहती है और उसे किसी के बंधन में नहीं बांधा जा सकता. उन्हें देश के लिए कुछ करने की इतनी लगन थी कि मात्र 19 साल की उम्र में वो भारतीय सेना में शामिल हो गए. सेना में शामिल होने के बाद उन्होंने बॉक्सिंग करना शुरू किया और धीरे-धीरे उनकी इसमें दिलचस्पी बढ़ने लगी.
1960 में शुरू किया बॉक्सिंग का सफ़र
1960 में हवा सिंह ने अपनी मुक्केबाज़ी का सफ़र शुरू किया. सफ़र की शुरुआत करने के दौरान ही हवा सिंह ने आंधी ला दी थी. उन्होंने उस समय के चैम्पियन मोहब्बत सिंह को हरा कर वेस्टर्न कमांड के चैम्पियन का ख़िताब अपने नाम किया था. इसके साथ ही वो 1962 से 1972 तक लगातार 11 साल नेशनल बॉक्सिंग चैम्पियन रहे. इस दौरान हर बॉक्सर उनके मुक्के से धराशायी हो जाता था.
साल 1962 में जकार्ता में आयोजित किए गए एशियाई खेलों में बॉक्सिंग टूर्नामेंट में हिस्सा लेने वाले खिलाड़ियों में हवा सिंह सबसे पहले नंबर पर थे. उस दौरान भारत-चीन के बीच युद्ध के चलते फ़ैसला किया गया कि कोई भी ख़िलाड़ी बॉक्सिंग टूर्नामेंट के लिए नहीं जाएगा. लेकिन हवा सिंह ने हार नहीं मानी. अगले एशियन खेलों का आयोजन थाईलैंड की राजधानी बैंकाक में हुआ. यहां हवा सिंह ने अपना जलवा दिखाया और स्वर्ण पदक अपने नाम किया. वो इकलौते भारतीय बॉक्सर हैं, जिन्होंने एशियाई कप में दो स्वर्ण पदक जीते हैं.
कहा जाता है कि 1972 में भी तेहरान में हुए एशियाई कप में हवा सिंह स्वर्ण पदक के हकदार थे. लेकिन रेफरी द्वारा दिए गए विवादस्पद निर्णय ने उनका ये मौका छीन लिया.
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1980 में बॉक्सिंग से लिया संन्यास
1980 में हवा सिंह ने बॉक्सिंग से संन्यास ले लिया और वापस भिवानी आ गए. हालांकि, इसके बाद वो ख़ुद भले ही बॉक्सिंग रिंग में नहीं उतरे लेकिन बॉक्सिंग के लिए ऐसे ख़िलाड़ी तराशे, जो आज ओलंपिक में भारत का परचम लहरा रहे हैं. 80 के दशक में उन्होंने भिवानी बॉक्सिंग ब्रांच के चीफ़ कोच का पद संभाला और अपने पहले बैच में 10 बच्चों को ट्रेन करना शुरू किया. इनमें एक नाम अर्जुन अवार्ड विजेता राजकुमार सांगवान का भी आता है.
उनका ट्रेनिंग देने का तरीका बिल्कुल आर्मी स्टाइल का था. सांगवान ने बताया था कि वो छात्रों को पक्की सड़कों पर उन जूतों में दौड़ाते थे, जिनकी सोल बहुत पतली होती थी. दिन ख़त्म होने तक सभी के पैर मोटे-मोटे छालों से भरे होते थे. वे अपने छात्रों से एक-दूसरे को कंधे या कमर पर उठाकर दौड़ लगवाते थे. एक बार हवा सिंह की ट्रेनिंग से तंग आकर सांगवान ट्रेनिंग छोड़कर गांव चले गए थे. लेकिन इसके बाद भी हवा सिंह ने उनका पीछा नहीं छोड़ा और उनके घर आ गए. उन्होंने सांगवान से कहा, “जानता हूं ये कठिन है लेकिन मेरी मान तो तू छोड़ कर मत भाग, तू बड़ा बॉक्सर बनेगा.” बाद में हवा सिंह की ये बात सच भी साबित हुई.
द्रोणाचार्य सम्मान मिलने से 15 दिन पहले हुआ निधन
हवा सिंह के भिवानी बॉक्सिंग क्लब की बदौलत देश को अखिल कुमार, विजेंद्र सिंह और जितेन्द्र कुमार जैसे क़ाबिल मुक्केबाज मिले. भारत सरकार ने हवा सिंह की सफ़लता को देखते हुए उन्हें 1966 में ‘अर्जुन पुरुस्कार‘ से सम्मानित किया. उन्हें 1968 में सेनाध्यक्ष द्वारा ‘बेस्ट स्पोर्ट्स मैन ट्रॉफी‘ भी दी गई. साल 1999 में हवा सिंह के बॉक्सिंग क्षेत्र में योगदान को देखते हुए उन्हें द्रोणाचार्य सम्मान देने की घोषणा की गई. उसके ठीक 15 दिन पूर्व 14 अगस्त 2000 को उनका अचानक निधन हो गया. उनका ये पुरस्कार उनकी पत्नी अंगूरी देवी ने प्राप्त किया.
उनके नाम पर भिवानी में आज भी कप्तान हवा सिंह बॉक्सिंग अकैडमी है.