Salma Baig First Gate Woman of India: भारत में आज महिलाएं हर फ़ील्ड में अपनी सफलता के परचम लहरा रही हैं. लेकिन देश में आज भी कई जगहें ऐसी भी हैं जहां महिलाओं की भागीदारी बेहद कम है. दरअसल, इन जॉब्स को महिलाओं के लिए मुश्किल माना जाता है. लेकिन जब इंसान के पास मज़बूरी के साथ-साथ कुछ कर गुजरने का जज़्बा हो तो कोई भी काम उसके लिए मुश्किल नहीं होता. इन्हीं महिलाओं में से एक लखनऊ की रहने वाली 29 साल की सलमा बेग (Salma Baig) भी हैं. ये सलमा का हौसला ही है कि वो जो काम कर रही हैं वहां आपने अक्सर पुरुषों को ही देखा होगा.
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दरअसल, लखनऊ मुख्यालय से क़रीब 12 किलोमीटर की दूरी पर ‘मल्हौर रेलवे क्रॉसिंग’ है. इस रेलवे क्रॉसिंग से प्रतिदिन 40 से अधिक ट्रेनें गुज़रती हैं. मैनुअल क्रॉसिंग होने की वजह से फाटक खोलने और बंद करने की ज़िम्मेदारी ‘गेटमैन’ की होती है. इस दौरान लोहे के भारी चक्के को घुमाकर गेट को खोलना भी ‘गेटमैन’ के काम में शामिल है. इसी भारी भरकम ज़िम्मेदारी को कोई पुरुष नहीं, बल्कि सलमा बेग निभा रही हैं. वो पिछले 10 साल से ये ज़िम्मेदारी निभा रही हैं. साल 2013 में सलमा भारत की पहली गेटवूमन (Gatewoman) बनीं थीं.
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Salma Baig First Gate Woman of India
चुनौतियां हम सबके सामने आती हैं. कुछ लोग अपने कदम पीछे खींच लेते हैं तो कुछ अपने हौसलों से इन चुनौतियों को कड़ी टक्कर देते हैं. लेकिन 29 साल की सलमा बेग ने भी ऐसा ही किया. सलमा ने अपने हौंसले से न सिर्फ़ पुरुषों के वर्चस्व वाले इस क्षेत्र में नौकरी करने का जज़्बा दिखाया, बल्कि वो ये काम पिछले 10 सालों से सफलतापूर्वक करती आ रही हैं. सलमा ने अपनी लगन से उन रिश्तेदारों और पड़ोसियों की सोच को गलत साबित किया, जो उन्हें गेटवूमन की नौकरी के लिए ताना दिया करते थे.
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दरअसल, 10 साल पहले मिर्ज़ा सलमा बेग के पिता गेटमैन की ये नौकरी किया करते थे, लेकिन स्वास्थ्य ख़राब होने की वजह से उनको नौकरी से हटना पड़ा. तब सलमा महज़ 19 साल की थीं. परिवार में माता-पिता और एक छोटी बहन थी. इसलिए परिवार के किसी एक सदस्य का नौकरी करना बेहद ज़रूरी था. ऐसे में सलमा ने आगे आकर पिता से कहा कि वो इस नौकरी के लिए परीक्षा देकर इसे हासिल करेगी. सलमा के इस फ़ैसले से न केवल पिता को बल्कि रिश्तेदारों को भी हैरत में डाल दिया था.
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पिता ने किया सपोर्ट तो रिश्तेदारों ने किया विरोध
पिता ने हौंसला बढ़ाया तो सलमा ने टेस्ट पास कर ये नौकरी हासिल कर ली. रूढ़िवादी परिवार से होने के चलते रिश्तेदारों ने इसका विरोध किया तो ऐसे में सलमा के पिता ने उनका साथ दिया. सलमा ने जिस दिन नौकरी जॉइन की तो रेल विभाग का स्टाफ़ उन्हें देख हैरान था. हर कोई यही सोच रहा था कि गेटमैन का काम एक लड़की कैसे कर पाएगी? ट्रेनिंग के दौरान स्टाफ़ के लोग आपस में ये बात तक करते थे कि ये चार दिन में ही नौकरी छोड़ देगी. लेकिन सलमा ने 1 महीने की गेटमैन की ट्रेनिंग भी पूरी कर इन सभी को ग़लत साबित किया.
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कितने घंटे की नौकरी होती है गेटमैन की
गेटमैन (Gatemen) की नौकरी 12 घंटे की होती है. इस दौरान उन्हें रेलवे क्रॉसिंग के भारी चक्का घुमा कर फ़ाटक खोलना पड़ता है. ट्रेन कब आएगी और कब जाएगी इसके लिए भी उन्हें अलर्ट रहना पड़ता है. 12 घंटे की इस नौकरी के दौरान रेलवे फ़ाटक से कई सारी ट्रेनें गुजरती हैं. इसके साथ ही जब तक रेलगाड़ी गुजर कर दूर न हो जाए गेट बंद रखना होता है.
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मिर्ज़ा सलमा बेग बताती हैं कि ‘मेरे पापा ने न सिर्फ़ मेरा हौसला ये कहकर बढ़ाया कि तुम गेट खोल सकती हो, बल्कि वो 1 महीने तक ड्यूटी पर मेरे साथ भी आते रहे. जब तक कि मैं इस काम में पूरी तरह अभ्यस्त नहीं हो गई. आज मेरे काम को लेकर लोगों की सोच बदली है. रेलवे स्टाफ़ भी मुझे सहयोग करता है. अब लोग न सिर्फ़ मेरी इज्जत करते हैं, बल्कि मेरे काम की तारीफ़ भी करते हैं. क्रॉसिंग से गुजरने वाले कई लोग तो मेरे साथ सेल्फ़ी तक खिंचवाते हैं’.
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सलमा आगे बताती हैं कि, जब मेरा रिश्ता तय हुआ तो मेरी नौकरी की वजह शादी तय होने में 2 साल लग गए थे. शादी तय होने पर मंगेतर कहता था कि उन्हें मेरा गेटमैन का ये काम अच्छा नहीं लगता, लेकिन मैंने उन्हें साफ़-साफ़ कह दिया था कि मैं अपना गेटवुमन का काम नहीं छोडूंगी. हालांकि, शादी के बाद मेरे पति मेरे काम को समझते हैं. आज मैं 1 साल के बेटे की मां होने के बावजूद ख़ुशी-ख़ुशी ये काम कर रही हूं और इस नौकरी को कभी नहीं छोड़ना चाहती.
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