कोटर रामास्वामी! शायद ही आज के दौर के क्रिकेट प्रेमी इस नाम से वाक़िफ़ हों. लेकिन वो आज़ादी से पहले के उन क्रिकेटरों में शुमार हैं जिन्होंने साउथ इंडियन क्रिकेट को एक नई पहचान दी. इसीलिए उन्हें ‘फ़ादर ऑफ़ साउथ इंडियन क्रिकेट’ भी कहा जाता है. क्रिकेट वर्ल्ड में सी. रामास्वामी के नाम से मशहूर कोटह रामास्वामी (Cotah Ramaswami) का जन्म आज ही के दिन 16 जून, 1896 को मद्रास में हुआ था. सी. रामास्वामी की ज़िंदगी बेहद दिलचस्प रही है.

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Cotah Ramaswami Indian Cricketer

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चलिए आज आप भी क्रिकेटर कोटह रामास्वामी (Cotah Ramaswami) की ज़िंदगी के कुछ अनसुने क़िस्से जान लीजिये.

टेनिस और क्रिकेट खेलने वाले एकलौते भारतीय

भारतीय क्रिकेट इतिहास में ऐसे कम ही क्रिकेटर हुए हैं, जिन्होंने एक नहीं, बल्कि दो-दो खेलों में देश का प्रतिनिधित्व किया हो. कोटह रामास्वामी (Cotah Ramaswami) ऐसे ही क्रिकेटर थे, जिन्होंने भारत के लिए इंटरनेशनल लेवल पर क्रिकेट और टेनिस खेला था. वो भारत के एकमात्र खिलाड़ी (क्रिकेटर) हैं, जो टेनिस का प्रतिष्ठित टूर्नामेंट ‘डेविस कप’ भी खेल चुके हैं.

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खेल चुके हैं ‘विंबलडन’ और ‘डेविस कप’ 

सी. रामास्वामी तमिलनाडु के क्रिकेटिंग फ़ैमिली से ताल्लुक रखते थे. उनके पिता और 2 भाई भी प्रथम श्रेणी क्रिकेटर थे. रामास्वामी के बेटे भी प्रथम श्रेणी क्रिकेटर रह चुके हैं. रामास्वामी ने 1923 तक ब्रिटेन की कैम्ब्रिज़ में पढ़ाई की थी. इस दौरान उन्होंने पुरुष युगल में ‘कैम्ब्रिज़ विश्वविद्यालय’ का प्रतिनिधित्व भी किया. इसके बाद उन्हें ‘डेविस कप’ टीम के लिए भारतीय टीम में चुना गया. इस दौरान ‘सी. रामास्वामी और हसन-अली फ़ेज़ी’ की जोड़ी ने रोमानिया को 5-0 से हराया था. ये जोड़ी सन 1923 का ‘विंबलडन’ भी खेली थी. इसके बाद रामास्वामी और फ़ेज़ी की जोड़ी ‘डेविस कप’ में भी खेली. इस दौरान इस जोड़ी ने 1 मैच जीता और 1 में हार मिली.

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प्रथम श्रेणी क्रिकेट में शानदार प्रदर्शन के बाद टीम इंडिया में जगह

सी. रामास्वामी कैम्ब्रिज़ की पढ़ाई ख़त्म करने के बाद सन 1924 भारत लौट आये और एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट में बतौर ऑफ़िसर काम करने लगे. वो अगले 24 सालों तक एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट में कार्य करते रहे. इसके साथ ही वो मद्रास (चेन्नई) में डिविज़नल क्रिकेट भी खेलने लगे. इसके बाद उन्होंने मैसूर के ख़िलाफ़ ‘रणजी ट्रॉफ़ी’ में डेब्यू किया. डेब्यू मैच में उन्होंने केवल 26 रन बनाये. इसके बाद अगले मैच में हैदराबाद के ख़िलाफ़ मैच विनिंग 35 रनों की पारी खेलकर रामास्वामी मशहूर हो गए. इसके बाद वो 1936 के इंग्लैंड दौरे के लिए भारतीय टीम में चुने गए.

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भारत के दूसरे बुज़ुर्ग टेस्ट क्रिकेटर 

कोटह रामास्वामी (Cotah Ramaswami) ने सन 1936 में इंग्लैंड के ख़िलाफ़ 40 साल 37 दिन की उम्र में अपना टेस्ट डेब्यू किया था. इस तरह से वो टेस्ट क्रिकेट में डेब्यू करने वाले दूसरे सबसे बुज़ुर्ग भारतीय क्रिकेटर बने थे. रामास्वामी से पहले आर. जमशेदजी सबसे अधिक उम्र में टेस्ट डेब्यू करने वाले भारतीय क्रिकेटर थे. जमशेदजी ने साल 1933 में 41 साल और 27 दिन की उम्र में अपना टेस्ट डेब्यू किया था.

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भारत के लिए खेल सके केवल 2 मैच

कोटह रामास्वामी (Cotah Ramaswami) भारत के लिए महज 2 टेस्ट मैच ही खेल पाए थे. इस दौरान उन्होंने 56.66 की औसत से 170 रन बनाए, जिसमें एक अर्धशतक शामिल था. हालांकि, रामास्वामी ने 53 प्रथम श्रेणी मैचों में 28.91 के औसत से 2400 रन बनाये हैं. फर्स्ट क्लास क्रिकेट में उनने नाम 2 शतक और 12 अर्धशतक हैं. इसके अलावा उन्होंने गेंदबाज़ी में 30 विकेट भी हासिल किये थे.

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सी. रामास्वामी की मौत आज भी एक रहस्य

‘फ़ादर ऑफ़ साउथ इंडियन क्रिकेट’ के नाम से मशहूर कोटह रामास्वामी (Cotah Ramaswami) की मौत आज भी एक रहस्य है. वो 15 अक्टूबर,1985 को 89 साल की उम्र में मद्रास के अड्यार में स्थित अपने घर से अचानक लापता हो गए थे. इसके बाद वह ना तो दिखाई दिए और ना ही आज तक उनकी डेड बॉडी मिल पाई. द बाइबिल ऑफ़ क्रिकेट ‘विजडन’ भी उन्हें ‘डेड’ घोषित कर चुकी है.